स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी के यौगिक मंत्र

स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी के यौगिक मंत्र

अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के लिहाज से 12 जनवरी के बड़े मायने तो हैं ही। अध्यात्म और योग की दृष्टि से भी इस दिवस की बड़ी अहमियत है। इसलिए कि इसी दिन स्वामी विवेकानंद की जयंती है तो दूसरी ओर महर्षि महेश योगी का भी जन्मदिन है। अपने वेदांत दर्शन के कारण दुनिया में भारत का मान बढ़ाने वाले स्वामी विवेकानंद और योगबल की बदौलत दुनिया को चमत्कृत करने वाले महर्षि महेश योगी को उनकी जयंती पर नमन। कोरोना महामारी के आलोक में इन दोनों महापुरूषों के यौगिक मंत्रों की बड़ी अहमियत है।

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चाहे युवा-शक्ति के अभ्युत्थान की बात हो या फिर बंगाल में 1899 में आए प्लेग से उत्पन्न पीड़ाएं, स्वामी विवेकानंद अपना अनुभव साझा करते हुए कहते थे – “सजगता की शक्ति ऐसी है कि वह ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त तो करती ही है, मानसिक पीड़ाओं से भी मुक्ति दिलाती है। हम देखते हैं कि सभी लोग नईपीढ़ी से कहते हैं कि अच्छे बनो, विवेकशील बनो। पर बताते नहीं कि ऐसा किस तरह संभव होगा। यदि मन अपने वश में न होगा तो कोई कब तक अच्छा या विवेकशील बना रह सकता है? मन की सजगता औऱ उसकी बुनियाद पर एकाग्रता का महल तभी खड़ा होगा, जब सजगता (प्रत्याहार) और एकाग्रता (धारणा) की किसी एक विधि को भी अपनी जीवन-शैली का हिस्सा बनाया जाएगा।“

महर्षि महेश योगी ने साठ के दशक में पश्चिमी देशों में जिस “भावातीत ध्यान” का डंका बजाया था, उसका आधार मुख्यत: प्रत्याहार ही था। उसके साथ मंत्र योग का समन्वय करके उसे शक्तिशाली बनाया गया था। विभिन्न कारणों से अवसाद में डूबे पश्चिमी दुनिया के युवाओं को भावातीत ध्यान से इतने फायदे मिले कि वह अवसाद से उबारने की यौगिक दवा बन गई थी। इससे चिकित्सा विज्ञानी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे। नतीजा हुआ कि दुनिया भर में भावातीत ध्यान के विभिन्न रोगों में प्रभावों पर शोध किए जाने लगे थे। अब तक सात सौ से ज्यादा शोध-कार्य किए जा चुके हैं। उनके सकारात्मक नतीजों का ही असर है कि कोरोना महामारी के कारण अवसादग्रस्त लोगों को योगनिद्रा की तरह ही भावातीत ध्यान भी खूब भा रहा है। योगनिद्रा भी प्रत्याहार की ही एक क्रिया है। इसे बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने आज की जरूरतों के लिहाज से विकसित करके प्रस्तुत किया था।

योगशास्त्र में कहा गया है कि इंद्रियों को अंतर्मुखी करने की कला प्रत्याहार है। चूंकि आमतौर पर सबकी चेतना बहुर्मुखी होती है और मन इंद्रियों का दास बनकर उसके इशारे पर नाच रहा होता है। इसलिए तरह-तरह की मानसिक समस्याएं खड़ी होती रहती हैं। स्वामी विवेकानंद कहते थे – “कुछ क्षण बैठें और मन को इधर-उधर दौड़ने दें। मन सदैव बुलबुलाता रहता है। वह उस कूदते हुए बंदर के समान है। बंदर को जितना कूदना है, कूदने दो; आप केवल रुककर देखते रहिए। एक लोकोक्ति के अनुसार, ज्ञान ही शक्ति है, और यह बिल्कुल सत्य है। जब तक आप यह नहीं जानते कि आपका मन क्या कर रहा है, आप उसको नियंत्रित नहीं कर सकते। उसे लगाम दीजिए; आपके भीतर कई घृणित विचार आ सकते हैं। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि आपके लिए ऐसा सोचना कैसे संभव था? परंतु आप देखेंगे कि प्रत्येक दिन मन की सनक धीरे-धीरे कम हिंसात्मक हो रही है, प्रत्येक दिन वह शांत हो रहा है।“

आमतौर पर माना जाता है कि चेतना की तीन अवस्थाएं हैं। पहली जागृति की चेतना। इस दौरान मन और शरीर दोनों ही क्रियाशील रहते हैं। दूसरी, स्वप्न की चेतना। इसमें मन और शरीर आंशिक रूप से क्रियाशील रहते हैं। तीसरी है, सुषुप्ति की चेतना। इसमें मन और शरीर विश्राम की अवस्था में होते हैं। महर्षि महेश योगी कहते थे कि चेतना की चौथी अवस्था भी होती है और वह है भावातीत चेतना। इसे विश्रामपूर्ण जागृति भी कहा जा सकता है। इसलिए कि इस अवस्था में हम मानसिक रूप से पूर्ण सजग और शारीरिक रूप से गहन विश्राम की अवस्था में रहते हैं। ऐसी अवस्था में गुरूमंत्र या किसी भी मंत्र का जप चलते रहने का चमत्कारिक प्रभाव होता है।

तंत्रशास्त्र में भी कहा गया है कि प्रत्याहार की अवस्था में जप योग की आध्यात्मिक चेतना के विकास में बड़ी भूमिका होती है। सदियों से योगी अनुभव करते रहे हैं कि चेतना की विशिष्ट अवस्था में मंत्र की ध्वनि से शरीर के प्रमुख छह चक्र प्रभावित होते हैं। इनमें मूलाधार चक्र यानी कोक्सीजेल सेंटर से लेकर आज्ञा चक्र यानी मेडुला सेंटर तक शामिल हैं। इसलिए मंत्र को चेतना की ध्वनि कहा जाता है। आधुनिक विज्ञान भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि चक्र प्रणाली का प्रत्येक स्तर शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और अतीन्द्रिय तत्वों का सम्मिश्रण है। इसलिए सभी चक्रों का संबंध किसी न किसी स्नायु तंत्र और अंत:स्रावी ग्रंथि से होता ही है। ऐसे में चक्रों के किसी भी प्रकार से स्पंदित होने पर उसका असर व्यापक होता है।

महर्षि महेश योगी वैसे तो भावातीत ध्यान की खूबियां लोगों के मन-मिजाज को ध्यान में रखकर अलग-अलग तरह से गिनाते थे। पर एक बात सभी से कहते थे – “स्वर्ग का साम्राज्य तुम्हारे अंदर है। भावातीत ध्यान के जरिए उसे हासिल करो। फिर सब कुछ प्राप्त हो जाएगा। यह कुछ और नहीं, बल्कि चेतना का विज्ञान है।“ उनकी ये बातें विज्ञानसम्मत साबित हुईं तो भावातीत ध्यान को लेकर इंग्लैंड के प्रसिद्ध रॉक बैंड ’द बीटल्स’ के कलाकारों की दीवानगी बढ़ गई। वे साठ के दशक में ध्यान सीखने ऋषिकेश पहुंच गए थे। आज भी भारत सहित दुनिया के 126 देशों में इस ध्यान साधना की मजबूत उपस्थिति बनी हुई है। अब तो वैज्ञानिक इसे क्वांटम मैकेनिक्स औऱ थर्मोडाइनोमिक्स से जोड़कर देखने लगे हैं।

स्वामी विवेकानंद सर्वकालिक प्रासंगिक रहे हैं। पर कोरोनाकाल में महर्षि महेश योगी का भावातीत ध्यान विशेष तौर से पश्चिमी जगत के युवाओं के लिए कोरामिन की तरह है।

(लेखक ushakaal.com के संपादक और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)

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